प्रदेश के शिक्षा विभाग का एक और अनूठा कारनामा देखने को मिला है। स्कूली अध्यापकों को हाऊसहोल्ड सर्वे में जुटाकर ड्रापआऊट बच्चों की सूची तैयार करने का जिम्मा दिया गया है। मगर जिस तरह महज एक दिन में यह सर्वे किया जाना है, उससे यह मिशन कम बल्कि खानापूर्ति यानी औपचारिकता अधिक प्रतीत हो रहा है।
प्रदेश के शिक्षा विभाग द्वारा प्रदेशभर में आरटीई यानी शिक्षा के अधिकार कानून को जोर- शोर से लागू किए जाने की कवायद शुरू की गई। इसके तहत विभिन्न प्रकार के सेमिनार आयोजित किए गए।
अब विभाग ने ड्रापआऊट बच्चों को स्कूलों में लाने का नया कदम उठाने का मन बनाया है। हालांकि ऐसे बच्चों को स्कूलों में लाने के लिए पहले भी प्रयास होते रहे हैं तथा सर्वे भी किया जाता रहा है मगर यह सब कागजों में ही होता रहा है। कलस्टर स्तर पर नियुक्त एबीआरसी के जरिए ऐसा सर्वे करवाया जाता रहा है।
इस बार भी यह सर्वे करवाने का मन विभाग के द्वारा बनाया गया। जब स्कूलों की छुट्टियां बढ़ाई गर्इं तो अध्यापकों को छह व सात जुलाई को स्कूलों में ही आने की हिदायतें महकमे के द्वारा जारी की गर्इं मगर किस काम के लिए उन्हें स्कूलों में आने की हिदायतें जारी की गईं वो काम उन्हें छह जुलाई को बाद दोपहर पता चला।
दरअसल विभाग के द्वारा अध्यापकों से ड्रापआऊट बच्चों का हाऊसहोल्ड सर्वे करवाया जाना था जो कि 6 व सात जुलाई दो दिन में पूरा किया जाना था। मगर हैरत की बात तो ये है कि कई स्कूलों में छह जुलाई को बाद दोपहर विभाग के नए फरमान से अवगत करवाया गया। इस फरमान के तहत अध्यापकों को अपने अपने गांवों अथवा कस्बोंं के तमाम घरों में जाकर वहां 0 से 16 साल तक के बच्चों की सूची,मुखिया का नाम एवं परिवारों का विवरण दिए जाने की बात कही गई है। एक निर्धारित प्रफोर्मा भी इस पूरे सर्वे के लिए दिया जाना था। मगर दिलचस्प बात यह है कि स्कूलों में अध्यापकों को 6 तरीख शाम तक प्रफोर्मे तक नहंी दिए गए। जिनके बिना सर्वे पूरा नहंी हो सकता। हालांकि विभाग के अधिकारियों ने खंड कार्यालयों को सूचित किया गया था मगर कई खंड कार्यालयों की लेटलतीफी एवं स्कूल प्रमुखों की लचर कार्रवाई के चलते प्रफोर्मे नहंी मिले हैं।
यूं भी पूरे गांव के सर्वे के लिए मात्र दो दिन निर्धारित किए गए हैं जिनमें से एक दिन तो जा चुका है। अब शेष बचे दूसरे दिन किस तरह से कार्रवाई पूरी की जाएगी व किस कदर सर्वे किया जाएगा,इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
माना जा रहा है कि सर्वे के नाम पर इस बार फिर महज औपचारिकता ही निभाई जानी है क्योंकि इतने विस्तृत काम के लिए एक दिन दिया जाना खानापूर्ति नहंी तो और क्या कहा जाएगा। दूसरे अभी तक निर्धारित प्रफोर्मे न भिजवाया जाना, कहीं न कहीं लचर व्यवस्था को ही दर्शा रहा है। जब इस संबंध में अधिकारियों से बात करनी चाही तो उनसे संपर्क नहीं हो पाया मगर विभाग से जुड़े कुछ लोगों का कहना था कि ऊपर से आदेश जिस तरह से मिलते हैं,वैसे ही कार्रवाई की जाती है।
प्रदेश के शिक्षा विभाग द्वारा प्रदेशभर में आरटीई यानी शिक्षा के अधिकार कानून को जोर- शोर से लागू किए जाने की कवायद शुरू की गई। इसके तहत विभिन्न प्रकार के सेमिनार आयोजित किए गए।
अब विभाग ने ड्रापआऊट बच्चों को स्कूलों में लाने का नया कदम उठाने का मन बनाया है। हालांकि ऐसे बच्चों को स्कूलों में लाने के लिए पहले भी प्रयास होते रहे हैं तथा सर्वे भी किया जाता रहा है मगर यह सब कागजों में ही होता रहा है। कलस्टर स्तर पर नियुक्त एबीआरसी के जरिए ऐसा सर्वे करवाया जाता रहा है।
इस बार भी यह सर्वे करवाने का मन विभाग के द्वारा बनाया गया। जब स्कूलों की छुट्टियां बढ़ाई गर्इं तो अध्यापकों को छह व सात जुलाई को स्कूलों में ही आने की हिदायतें महकमे के द्वारा जारी की गर्इं मगर किस काम के लिए उन्हें स्कूलों में आने की हिदायतें जारी की गईं वो काम उन्हें छह जुलाई को बाद दोपहर पता चला।
दरअसल विभाग के द्वारा अध्यापकों से ड्रापआऊट बच्चों का हाऊसहोल्ड सर्वे करवाया जाना था जो कि 6 व सात जुलाई दो दिन में पूरा किया जाना था। मगर हैरत की बात तो ये है कि कई स्कूलों में छह जुलाई को बाद दोपहर विभाग के नए फरमान से अवगत करवाया गया। इस फरमान के तहत अध्यापकों को अपने अपने गांवों अथवा कस्बोंं के तमाम घरों में जाकर वहां 0 से 16 साल तक के बच्चों की सूची,मुखिया का नाम एवं परिवारों का विवरण दिए जाने की बात कही गई है। एक निर्धारित प्रफोर्मा भी इस पूरे सर्वे के लिए दिया जाना था। मगर दिलचस्प बात यह है कि स्कूलों में अध्यापकों को 6 तरीख शाम तक प्रफोर्मे तक नहंी दिए गए। जिनके बिना सर्वे पूरा नहंी हो सकता। हालांकि विभाग के अधिकारियों ने खंड कार्यालयों को सूचित किया गया था मगर कई खंड कार्यालयों की लेटलतीफी एवं स्कूल प्रमुखों की लचर कार्रवाई के चलते प्रफोर्मे नहंी मिले हैं।
यूं भी पूरे गांव के सर्वे के लिए मात्र दो दिन निर्धारित किए गए हैं जिनमें से एक दिन तो जा चुका है। अब शेष बचे दूसरे दिन किस तरह से कार्रवाई पूरी की जाएगी व किस कदर सर्वे किया जाएगा,इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
माना जा रहा है कि सर्वे के नाम पर इस बार फिर महज औपचारिकता ही निभाई जानी है क्योंकि इतने विस्तृत काम के लिए एक दिन दिया जाना खानापूर्ति नहंी तो और क्या कहा जाएगा। दूसरे अभी तक निर्धारित प्रफोर्मे न भिजवाया जाना, कहीं न कहीं लचर व्यवस्था को ही दर्शा रहा है। जब इस संबंध में अधिकारियों से बात करनी चाही तो उनसे संपर्क नहीं हो पाया मगर विभाग से जुड़े कुछ लोगों का कहना था कि ऊपर से आदेश जिस तरह से मिलते हैं,वैसे ही कार्रवाई की जाती है।
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