गौरतलब है कि जिले में घरेलू गैस सिलेंडर की किल्लत चल रही है। नियमानुसार बच्चों के लिए मिड-डे मील गैस चूल्हों पर बनाने के निर्देश दिए गए हैं। गैस किल्लत के कारण इन आदेशों को पूरा करने में स्कूल प्रशासन खुद को लाचार महसूस कर रहे हैं। इसके अलावा मिड-डे मील की देखरेख, शुद्धता व रोजाना के हिसाब से रजिस्टर बनाना भी अध्यापकों को मानसिक रूप से परेशान रखता है। जिन अध्यापकों पर मिड-डे मील की जिम्मेवारी सौंपी जाती है, उनमें से ज्यादातर अध्यापक विद्यार्थियों को पढ़ाने के स्थान पर इसी काम में लगे रहते हैं। अध्यापकों का आरोप है कि सरकार व सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत योजनाएं भली भांति लागू करने की जिम्मेवारियां अधिकारियों की हैं, लेकिन इनका निर्वहन अध्यापकों को करना पड़ रहा है।
योजना को सफलता पूर्वक चलाने के लिए सरकारी स्कूलों में आवश्यक बुनियादी ढांचा ही उपलब्ध नहीं कराया गया है। दूसरी ओर निदेशालय की ओर से विद्यार्थियों को दिए जाने वाले राशन की बढ़ोतरी तो कर दी गई है, लेकिन इस पर लगने वाली लागत का ध्यान नहीं रखा गया है।
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