भजनलाल सरकार के समय भरती 1600 सिपाहियों को सुप्रीम कोर्ट ने बर्खास्त करने के आदेश जारी किए थे। करीब दस साल से ये बर्खास्त सिपाही दोबारा नौकरी पर रखे जाने की मांग कर रहे थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण इन्हें एडजस्ट नहीं किया जा सकता था। बर्खास्त सिपाहियों ने संगठन बनाया और आखिर में मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से ‘कुछ’ करने को कहा। मुख्यमंत्री ने एक बार तो जेल वार्डर के खाली पदों पर सीधे एडजस्ट करने का फैसला किया था लेकिन तत्कालीन वित्त मंत्री कैप्टन अजय यादव ने प्रस्ताव नामंजूर कर दिया था।
इसके बाद तरीका ढूंढा गया और जेल वार्डर भरती के नियमों में बदलाव किया गया। मंत्रिमंडल से नियमों के बदलाव को मंजूरी दी गई। पहले जेल वार्डर के लिए दसवीं पास को आवेदन के योग्य माना जाता था। अब जो बदलाव किया गया है, उसके अनुसार जेल वार्डर के लिए वही योग्य होगा, जिसने हरियाणा पुलिस में कम से कम पांच साल सर्विस की हो।
इस शर्त से बर्खास्त 1600 सिपाही ही योग्य होंगे। यह अलग बात है कि इनमें से कुछ की मौत हो चुकी है तो कुछ को कहीं और नौकरी मिल चुकी है। यानी जितने खाली पद जेल वार्डर के होंगे, उतने ही बर्खास्त सिपाही भरती होंगे।