Saturday, May 5, 2012

पहले जज फिर आईपीएस अब आईएएस


फतेहाबाद के ढाणी डुल्ट गांव के विरेंद्र कुलडिय़ा ने आईएएस परीक्षा पास कर 409वां स्थान प्राप्त किया है। 10वीं तक की पढ़ाई गांव में करने के बाद विरेंद्र ने पंजाब से ग्रेजुएशन और चंडीगढ़ से इंजीनियरिंग की। वर्ष 2009.10 में ग्रेजुएशन करने के बाद आईएएस की तैयारियों में जुट गए। पहली कोशिश में असफल होने के बाद फिर से परीक्षा दी और सफलता हासिल कर ली।
उन्होंने कहा कि परीक्षा को जितना मुश्किल समझते हैं हकीकत में यह इतनी मुश्किल नहीं होती है। बस माइंड सैट क्लियर होना चाहिए। सात से आठ घंटे पढ़ाई परीक्षा में सफलता है लिए प्रर्याप्त होते हैं। 24 वर्षीय विरेंद्र इस बात की उम्मीद कम है कि उन्हें आईएएस कैडर मिलेगा। उन्होंने कहा कि वह फिर से इसके लिए तैयारी करेंगे। अपनी इस सफलता का श्रेय माता मैना देवा और पिता राजेंद्र कुल्हडिय़ा के सहयोग और आशीर्वाद को दिया है। इससे पहले विरेंद्र ने नोयडा में कंप्यूटर साइंसिज कार्पोरेशन में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर भी काम किया। विरेंद्र का कहना है कि कार्पोरेट जगत में एक कंपनी के लिए काम किया जाता है। लेकिन उस काम में वह संतोष नहीं मिलता है जो प्रशासन में रहकर लोगों की सेवा करने में मिलता है। 

भास्कर न्यूज त्न हिसार
सिवानी बोलान गांव के सिद्धार्थ सिहाग ने सफलता की नई इबारत लिखी है। मेहनत के दम पर हर बार सफलता को प्राप्त किया। बिना कोचिंग के ऑल इंडिया सिविल सर्विस में सिद्धार्थ सिहाग ने 42वां स्थान प्राप्त किया है।

सिद्धार्थ सिहाग ने बीते साल भी इस परीक्षा में 148वां रैंक पाया था और तब उन्हें आईपीएस कैडर मिला। मगर सिद्धार्थ का लक्ष्य आईएएस बनना था। उन्होंने नए जोश के साथ मेहनत की और मुकाम को हासिल कर लिया। इस बार उन्हें 42वां रैंक मिला और प्रशासनिक सेवाओं में जगह भी। सिद्धार्थ फिलहाल नेशनल पुलिस अकेडमी हैदराबाद में आईपीएस की ट्रेनिंग कर रहे हैं। आईपीएस कैडर से पहले सिद्धार्थ सिहाग ने दिल्ली ज्यूडिशियल सर्विस की परीक्षा दी और पांचवां स्थान प्राप्त किया। इसके बाद उन्हें सिविल जज मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट का पद मिला। छह महीने जज का यह पद संभाला। मगर उनकी निगाहें अपने लक्ष्य पर ही टिकी थी। भास्कर से अपनी कामयाबी की खुशी साझा करते हुए उन्होंने कहा कि वे आईपीएस कैडर से संतुष्ट नहीं थे और फिर सिविल सर्विस की परीक्षा देने का फैसला किया। सिद्धार्थ का कहना है कि आईपीएस अधिकारी का दायरा लॉ एंड ऑर्डर मेंटेन करने और क्राइम प्रिवेंशन तक ही सीमित होकर रह जाता है। यही सबसे बड़ा कारण था कि फिर से आईएएस के लिए फाइट शुरू कर दी। उन्होंने कहा कि आईएएस अधिकारी का दायरा अपेक्षाकृत बहुत बड़ा होता है और गांव के विकास से लेकर जनसेवा का मौका मिलता है।

सिद्धार्थ की सफलता ही फेहरिस्त काफी लंबी है। लॉ यूनिवर्सिटी हैदराबाद से प्रथम स्थान पर प्राप्त करने के बाद आईआईएम कोलकाता में प्रवेश हासिल किया। एक महीने के बाद पढ़ाई छोड़ दी। निजी संस्थानों में भी नौकरी पर हाथ आजमाया, लेकिन संतोष नहीं मिला। फिर दिल्ली ज्यूडिशियल सर्विस की परीक्षा दी और सिविल जज मैट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट का पद ग्रहण किया। लेकिन मंजिल थी प्रशासनिक अधिकारी बनने की जो उन्होंने हासिल की।

अपनी सफलता का श्रेय पिता दिलबाग सिंह सिहाग और मां उर्मिल सिहाग को दिया। दिलबाग सिंह सिंह चीफ टाउन प्लानर हरियाणा के पद पर कार्यरत हैं और मां हाउस वाइफ हैं। सिद्धार्थ का भाई छोटा भाई सिद्धांत सिहाग कोलकाता लॉ यूनिवर्सिटी में थर्ड इयर की पढ़ाई कर रहा है।

शुरू से ही पढ़ाई में अववल रहे सिद्धार्थ का कहना है कि यहां तक पहुंचने के लिए 16 -16 घंटे पढ़ाई करने की आवश्यकता नहीं होती है। मेंटल स्ट्रैंथ के साथ छह से आठ घंटे पढ़ाई काफी है।

विरेंद्र कुलहडिय़ा. ने पहले प्रयास में असफलता के बाद हार नहीं मानी