नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो : जिन स्कूलों को गरीबों के बच्चे बड़ी हसरत भरी निगाहों से देखा करते थे अब वह उनमें दाखिला भी ले सकेंगे। ये बच्चे न केवल स्वर्णिम भविष्य के सपने देख सकेंगे बल्कि उन्हें साकार करने का मौका भी अब मिलेगा। यह अवसर उन्हें देश की सर्वोच्च अदालत के अहम फैसले से मिला है। सुप्रीम कोर्ट ने 6 से 14 साल के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा के मौलिक अधिकार पर अपनी मुहर लगा दी है। यह फैसला देश में नई क्रांति ला सकता है। जिससे सामाजिक बदलाव की नई बयार बहेगी। चाय वाला, सब्जी वाला, आइसक्रीम बेचने वाला यहां तक की मजदूरी करने वाला साधारण आदमी भी अपने बच्चे को डॉक्टर और इंजीनियर बनाने का ख्वाब संजो सकता है। इस निर्णय से देशभर में सरकारी और गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में 25 फीसद सीटें गरीब बच्चों के लिए आरक्षित होंगी। सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा के कानून को संविधान सम्मत ठहराते हुए यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। तीन न्यायाधीशों (एसएस कपाडि़या, स्वतंत्र कुमार और केएस राधाकृष्णन) की पीठ ने 2-1 के बहुमत से फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि शिक्षा का कानून 2009 संविधान सम्मत है। मालूम हो कि सरकार ने संविधान में संशोधन कर अनुच्छेद 21 ए जोड़ा था जो कि 6 वर्ष से 14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का मौलिक अधिकार देता है। निजी स्कूलों ने कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सोसाइटी फार अनएडेड स्कूल ऑफ राजस्थान आदि की ओर से दाखिल याचिकाओं का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। कपिल सिब्बल ने जताई खुशी : फैसले के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय आगे की रणनीति बनाने में जुट गया है। वहीं कपिल सिब्बल ने कहा कि इसके बाद इससे जुड़ी सभी भ्रांतियां दूर हो गई हैं।

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