शिक्षा के अधिकार कानून के तहत गरीब बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ तमिलनाडु के निजी स्कूलों के संगठन ने पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का फैसला किया है। वहीं कोलकाता के शीर्ष अल्पसंख्यक स्कूल सीट आरक्षित करने के प्रावधान से बचने की जुगत में जुट गए हैं। इसके लिए वे सरकार से किसी भी तरह की मदद न लेने पर विचार कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत शिक्षा का अधिकार कानून ऐसे सभी अल्पसंख्यक स्कूलों पर लागू होगा जिन्हें सरकारी सहायता हासिल होती है। यानि उन्हें इस कानून के तहत गरीब बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित रखनी होंगी और उन्हें अन्य बच्चों को दी
जाने वाली सुविधाएं मुफ्त देनी होंगी। तमिलनाडु के स्कूलों ने इस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत की ही बड़ी बेंच में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का निर्णय लिया है। तमिलनाडु प्राइवेट स्कूल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष आर. विसालाक्षी ने कहा, हमारे वकीलों ने हमें बताया है कि इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ में पुनर्विचार याचिका दाखिल हो सकती है, लिहाजा हम शीर्ष कोर्ट से बड़ी पीठ गठित करने का अनुरोध करेंगे। वहीं, एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक, प. बंगाल में कोलकाता के अल्पसंख्यक स्कूल तो सरकारी सहायता ठुकराने पर विचार कर रहे हैं। सेंट्रल कोलकाता स्कूल के प्रधानाचार्य के मुताबिक, शीर्ष अदालत का फैसला सराहनीय है, लेकिन हमारे लिए सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें छोड़ना संभव नहीं है, लिहाजा हम सरकारी मदद (डियरनेस एलाउंस) न लेने पर विचार कर रहे हैं। दरअसल, बंगाल सरकार सेंट जेवियर, डॉन बोस्को, सेंट लारेंस और सेंट टेरेसा जैसे कोलकाता के शीर्ष अल्पसंख्यक स्कूलों को डियरनेस एलाउंस के रूप में मदद देती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सरकारी मदद नहीं लेने वाले सभी अल्पसंख्यक स्कूलों को आरक्षण के इस प्रावधान से मुक्त रखा है। एसोसिएशन ऑफ क्रिश्चियन स्कूल्स के महासचिव फादर मलय डिकोस्टा ने बताया कि इस मुद्दे पर स्कूलों में मतदभेद है कि सरकार से डियरनेस एलाउंस के रूप में मदद ली जाए या नहीं, क्योंकि मदद न लेने पर स्कूलों पर वेतन का बोझ काफी बढ़ जाएगा। इसके अलावा कुछ स्कूलों में इस बात को लेकर भी भ्रम है कि डियरनेस एलाउंस सरकारी मदद की श्रेणी में आता है या नहीं। उन्होंने कहा कि हम इस बारे में कानूनी सलाह ले रहे हैं और उसके बाद ही कोई फैसला लें
जाने वाली सुविधाएं मुफ्त देनी होंगी। तमिलनाडु के स्कूलों ने इस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत की ही बड़ी बेंच में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का निर्णय लिया है। तमिलनाडु प्राइवेट स्कूल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष आर. विसालाक्षी ने कहा, हमारे वकीलों ने हमें बताया है कि इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ में पुनर्विचार याचिका दाखिल हो सकती है, लिहाजा हम शीर्ष कोर्ट से बड़ी पीठ गठित करने का अनुरोध करेंगे। वहीं, एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक, प. बंगाल में कोलकाता के अल्पसंख्यक स्कूल तो सरकारी सहायता ठुकराने पर विचार कर रहे हैं। सेंट्रल कोलकाता स्कूल के प्रधानाचार्य के मुताबिक, शीर्ष अदालत का फैसला सराहनीय है, लेकिन हमारे लिए सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें छोड़ना संभव नहीं है, लिहाजा हम सरकारी मदद (डियरनेस एलाउंस) न लेने पर विचार कर रहे हैं। दरअसल, बंगाल सरकार सेंट जेवियर, डॉन बोस्को, सेंट लारेंस और सेंट टेरेसा जैसे कोलकाता के शीर्ष अल्पसंख्यक स्कूलों को डियरनेस एलाउंस के रूप में मदद देती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सरकारी मदद नहीं लेने वाले सभी अल्पसंख्यक स्कूलों को आरक्षण के इस प्रावधान से मुक्त रखा है। एसोसिएशन ऑफ क्रिश्चियन स्कूल्स के महासचिव फादर मलय डिकोस्टा ने बताया कि इस मुद्दे पर स्कूलों में मतदभेद है कि सरकार से डियरनेस एलाउंस के रूप में मदद ली जाए या नहीं, क्योंकि मदद न लेने पर स्कूलों पर वेतन का बोझ काफी बढ़ जाएगा। इसके अलावा कुछ स्कूलों में इस बात को लेकर भी भ्रम है कि डियरनेस एलाउंस सरकारी मदद की श्रेणी में आता है या नहीं। उन्होंने कहा कि हम इस बारे में कानूनी सलाह ले रहे हैं और उसके बाद ही कोई फैसला लें
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