महज 12 वर्ष की उम्र में आइआइटी प्रवेश परीक्षा में सफलता। सुनने में यह अविश्वसनीय लगता है लेकिन है सच। बिहार के छोटे से गांव के सत्यम कुमार ने यह सच साबित कर दिखाया है। उसकी सफलता पर बिहार गर्व कर रहा है। महज पांच वर्ष की उम्र में रामायण और गीता जैसे महाकाव्यों को कंठस्थ करने वाले बालक सत्यम के बारे में सबको यह विश्र्वास था कि एक दिन यह बालक अद्भुत कार्य करेगा। छोटे से गांव बखोरापुर निवासी सिद्धनाथ सिंह के पुत्र सत्यम कुमार का जन्म 20 जुलाई, 1999 में हुआ था। मां मैट्रिक पास हैं लेकिन पिता वह भी नहीं। दोनों अपनी घर-गृहस्थी से ज्यादा कुछ नहीं जानते। मगर सत्यम के बाबा ने बच्चे की बुद्धि की परख बचपन में ही कर ली थी। साढ़े छह वर्ष की अवस्था में ही बच्चे को पटना के सेंट्रल पब्लिक स्कूल में नौवीं कक्षा में प्रवेश मिल
गया। वह वर्ष 2007 में यहां की पढ़ाई बीच में छोड़कर कोटा स्थित रेजुनेंस इंस्टीट्यूट में नामांकन के लिए गया। वहां के डायरेक्टर आरके वर्मा ने सत्यम का टेस्ट लिया। उम्र को मात देने वाली विलक्षण मेधा से प्रभावित डायरेक्टर ने अपने खर्च से सत्यम को नौवीं से बारहवीं तक विधिवत शिक्षा दिलाई। इसका नतीजा है कि सत्यम ने आइआइटी की परीक्षा में मात्र 12 साल की उम्र में पास कर ली।
गया। वह वर्ष 2007 में यहां की पढ़ाई बीच में छोड़कर कोटा स्थित रेजुनेंस इंस्टीट्यूट में नामांकन के लिए गया। वहां के डायरेक्टर आरके वर्मा ने सत्यम का टेस्ट लिया। उम्र को मात देने वाली विलक्षण मेधा से प्रभावित डायरेक्टर ने अपने खर्च से सत्यम को नौवीं से बारहवीं तक विधिवत शिक्षा दिलाई। इसका नतीजा है कि सत्यम ने आइआइटी की परीक्षा में मात्र 12 साल की उम्र में पास कर ली।