Monday, May 28, 2012

आरटीआई के दायरे में नहीं आएंगे सीबीएसई के मार्क्स


सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत सीबीएसई को दसवीं की परीक्षा में किसी छात्र द्वारा हासिल किए गए अंक बताने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है दिल्ली हाईकोर्ट ने।
अदालत ने कहा है कि छात्रों को नंबर बताना उचित नहीं है, क्योंकि अगर ऐसा किया जाता है तो ग्रेडिंग सिस्टम का उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। इसके साथ ही अदालत की दो सदस्यीय खंडपीठ ने एकल पीठ के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें ग्रेडिंग के बदले नंबर बताने का आदेश दिया गया था। कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा कि यह जानकारी सूचना के अधिकार के तहत नहीं आती।
दसवीं पास कर चुकी एक छात्रा के पिता अनिल कुमार कथपाल ने सीबीएसई द्वारा नंबर नहीं बताने पर केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) से गुहार लगाई थी। अनिल ने अपनी याचिका में कहा था कि वह बेटी के नंबर किसी गलत उद्देश्य से नहीं जानना चाह रहे। वह तो सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि उनकी बेटी किस विषय में कमजोर है। उसके आधार पर वह यह फैसला ले पाएंगे कि बारहवीं के बाद उसके भविष्य के लिए क्या बेहतर होगा।
उनकी गुहार पर सीआईसी ने सीबीएसई से छात्रा के नंबर बताने को कहा था।
इस फैसले के खिलाफ सीबीएसई की ओर से हाईकोर्ट में अपील दायर की गई। एकल पीठ ने भी सीआईसी के फैसले को सही ठहराया। इसके बाद सीबीएसई की ओर से दो सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष याचिका दायर की गई। मामले पर सुनवाई के बाद कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश एके सीकरी और न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलो की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को रद्द कर दिया।