Sunday, May 20, 2012

छात्र-छात्राओं की अलग-अलग रुचि से ऐसा हो गया कैंपस का संतुलन

आईआईटी में दस फीसदी तो आईआईएम में औसत 20 फीसदी ही छात्राएं हैं। इसका असर इनसे जुड़े प्रोफेशन पर हो रहा है। कोई कंपनी यदि मैनेजर के रूप में छात्रा को मौका देना चाहती है, तो उसे टॉप बिजनेस स्कूल में उम्मीदवार ही नहीं मिल रहे। यही हाल टेक्नोलॉजी सेक्टर का है। 

आईआईटी में हर 11 छात्र के मुकाबले एक ही छात्रा है। देश के अन्य इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी कॉलेजों में छात्राओं के मुकाबले छात्रों की संख्या ढाई गुनी थी। आईआईटी-दिल्ली के डायरेक्टर प्रो. आरके शेवगांवकर कहते हैं कि यह रुचि की बात है। जहां कंप्यूटर साइंस विभाग में छात्र-छात्राएं बराबर होती हैं। वहीं मैकेनिकल में छात्राएं न के बराबर होती हैं। लेकिन अब कई कोर्स में छात्राओं की संख्या न सिर्फ बढ़ रही है, बल्कि वे टॉपर्स की सूची में भी आ रही हैं। -शेष पेज 02 पर 


मेडिकल कॉलेज में छात्राओं की संख्या ज्यादा है। लेकिन उनका स्पेशलाइजेशन ज्यादातर गायनेकोलॉजी या पीडियाट्रिक्स में होता है। सर्जरी में तो न के बराबर। अब कोशिशें हो रही हैं कि इंस्टीट्यूट और कोर्स में छात्र-छात्राओं के असंतुलन को दूर किया जाए। 

देश के पांच प्रमुख आईआईएम में भी छात्राएं दस से 36 प्रतिशत ही हैं। आईसीआईसीआई के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर, एचआर के. रामकुमार कहते हैं कि हमारा मैनेजमेंट चाहता है कि टॉप लेवल पर महिलाओं को लाया जाए। लेकिन परेशानी यह है कि बिजनेस स्कूलों में 15-20 प्रतिशत ही छात्राएं हैं। अब कोलकाता और कोझीकोड के अलावा छह नए आईआईएम छात्राओं के प्रवेश को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष अंक देने जा रहे हैं। 

यूजीसी के मुताबिक देश में सिर्फ दो ही कोर्स ऐसे हैं, जहां छात्राओं की संख्या छात्रों से ज्यादा है। एक है एजुकेशन और दूसरा मेडिसिन। छात्राओं को बेहतर शिक्षक माना जाता है, इसलिए बी.एड. और एम.एड. में उनकी अधिकता स्वाभाविक है। लेकिन 2010-11 के सत्र में देश के मेडिकल कॉलेजों में छात्रों की तुलना में आठ हजार ज्यादा छात्राएं पढ़ रही थीं। एजुकेशन में छात्राओं की संख्यों छात्रों के मुकाबले डेढ़ गुना ज्यादा है। 

हार्ट हॉस्पिटल नारायण हृदयालय के चेअरमैन डॉ. देवी शेट्टी के मुताबिक आज-कल मेडिकल कॉलेजों में 60 फीसदी छात्राएं होती हैं। कहीं-कहीं तो 70 फीसदी। जबकि सत्तर के दशक में 20 फीसदी छात्राएं ही मेडिसिन चुनती थीं। इसकी वजह यह नहीं है कि छात्रों को मेडिसिन में रुचि नहीं रही। बल्कि अब छात्राएं प्रवेश परीक्षा में ज्यादा स्कोर लेकर आ रही हैं। हालांकि, इससे एक विसंगति भी पैदा हो रही है। छात्राएं मेडिसिन में अधिकतर पीडियाट्रिक्स या गायनेकोलॉजी को चुनती हैं। इससे भविष्य में सर्जन की कमी का अंदेशा जताया जा रहा है। 

सेंट स्टीफन में हुई छात्रों को बराबरी पर लाने की कोशिश: