लंदन में कई स्कूल शिक्षा की एक अनूठी तकनीक अपना रहे हैं। इन स्कूलों ने क्लासरूम को होमवर्क के माहौल में और होमवर्क को क्लासवर्क में बदल दिया है। यानी वे छात्रों से क्लास में होमवर्क और घर में क्लासवर्क करने को कहते हैं। इस तकनीक को 'फ्लिप्ड क्लासरूम फॉर्मेट' कहते हैं। इन स्कूलों की तर्ज पर मुंबई के सांताक्रुज में स्थित आरएन पोद्दार स्कूल ने भी अब इस फॉर्मेट को अपनाने का फैसला किया है। इसमें विद्यार्थियों द्वारा सारा होमवर्क स्कूल में किया जाएगा, जबकि कक्षा का तमाम सिलेबस घर में पढ़ा जाएगा। एक फ्लिप्ड क्लासरूम पारंपरिक शैक्षणिक तकनीकों को उलटते हुए क्लास के बाहर ऑनलाइन तरीके से शिक्षा प्रदान करता है, जबकि होमवर्क को कक्षा में ले आता है। किसी पारंपरिक क्लासरूम में शिक्षक आपको पढ़ाते हैं और पीरियड के दौरान ज्यादातर यह एकतरफा संवाद होता है। इसलिए स्कूल ने फैसला किया कि तमाम विषयों के लेक्चर्स की रिकॉर्र्डिंग करवाई जाए और इन्हें एक लिंक के जरिए छात्रों तक पहुंचाया जाए। छात्र अपने कंप्यूटर पर लॉग-इन करके इन लेक्चर्स को सुन-समझ सकते हैं। छात्र इस संदर्भ में अपनी तमाम शंकाओं के बारे में लिखते हुए इनके बारे में क्लासरूम में टीचर के साथ चर्चा कर सकते हैं।
इस फॉर्मेट के तहत अब वीडियो, इंटरनेट या वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए लेक्चर्स लिए जा सकते हैं। इसके अलावा शिक्षक भी कभी-कभार सोशल नेटवर्किंग साइट्ïस पर जाकर यह देख सकते हैं कि उनके छात्रों को विषय संबंधी क्या-क्या दिक्कतें पेश आ रही हैं।होमवर्क को लेकर छात्रों के मन में आम धारणा यह होती है कि 'यह हम पर लादा जाता है और इसके चलते हम बाहर खेलने भी नहीं जा सकते।' लेकिन अब फ्लिप्ड क्लासरूम फॉर्मेट के साथ उन्हें होमवर्क करने में मजा आएगा और लेक्चर जैसा एकालाप जहां है, वहीं रहेगा।
फंडा यह है कि... यदि आप वास्तव में चाहते हैं कि स्कूल आने वाले हरेक बच्चे के मस्तिष्क में शिक्षा का सार सौ फीसदी तक पैठे, तो इस तरह की नई तकनीकों व प्रक्रियाओं को आजमाते रहें। इससे हमारी नई पीढ़ी की सीखने की क्षमता बढ़ेगी।
इस फॉर्मेट के तहत अब वीडियो, इंटरनेट या वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए लेक्चर्स लिए जा सकते हैं। इसके अलावा शिक्षक भी कभी-कभार सोशल नेटवर्किंग साइट्ïस पर जाकर यह देख सकते हैं कि उनके छात्रों को विषय संबंधी क्या-क्या दिक्कतें पेश आ रही हैं।होमवर्क को लेकर छात्रों के मन में आम धारणा यह होती है कि 'यह हम पर लादा जाता है और इसके चलते हम बाहर खेलने भी नहीं जा सकते।' लेकिन अब फ्लिप्ड क्लासरूम फॉर्मेट के साथ उन्हें होमवर्क करने में मजा आएगा और लेक्चर जैसा एकालाप जहां है, वहीं रहेगा।
फंडा यह है कि... यदि आप वास्तव में चाहते हैं कि स्कूल आने वाले हरेक बच्चे के मस्तिष्क में शिक्षा का सार सौ फीसदी तक पैठे, तो इस तरह की नई तकनीकों व प्रक्रियाओं को आजमाते रहें। इससे हमारी नई पीढ़ी की सीखने की क्षमता बढ़ेगी।