Saturday, April 14, 2012

शिक्षा अधिकार कानून की राह में रोड़े ही रोड़े

 निजी विद्यालयों में निर्धन तबके के बच्चों को 25 फीसद सीट आरक्षित करने के संदर्भ में अभी भी संशय बरकरार है। जिले के अधिकतर स्कूलों में सीट पूरी तरह भर चुकी हैं। इस कारण अब स्कूल संचालकों की आस शिक्षा विभाग पर टिकी हुई है कि गरीब बच्चों को स्कूल में किस तरह प्रवेश दिया जाए? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी जिले के अधिकतर स्कूलों में आरटीई को लागू करना प्रशासन व शिक्षा विभाग के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। जिले में लगभग साढ़े पांच सौ से अधिक प्राइवेट स्कूल हैं, जिसमें 25 हजार बच्चों का दाखिला है। इस हिसाब से निजी स्कूल संचालकों को 6250 गरीब बच्चों को सीट आरक्षित करनी होंगी। फिलहाल दाखिला प्रक्रिया अंतिम चरण में है। जिले के अधिकतर नामी-गिरामी स्कूलों में शामिल डीएवी स्कूल, तेग बहादुर स्कूल, वीएन स्कूल, आरएसडी स्कूल, सावन स्कूल, सेट जेवियर्स आदि में तो 15 दिन पहले से ही सीट रिजर्व है। आखिर इस आदेश को किस प्रकार विद्यालयों पर थोपा जाए, यह एक चिंता का सबब बना हुआ है। डीसी कालोनी स्थित सेंट्रल सीनियर स्कूल के संचालक नरेश पवार का कहना है कि प्राइवेट स्कूलों ने गरीब बच्चों को प्रवेश करने से कभी भी आनाकानी नहीं की है, परंतु आरटीई अधिनियम के अंतर्गत 25 फीसद बच्चों की फीस सरकार को वहन करनी होगी। इस पर अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है, दूसरी बात निर्धन वर्ग के विद्यार्थियों का निर्धारण खुद जिला शिक्षा अधिकारी करें। इसके बाद ही स्कूलों में दाखिला दिया जा सकता है।

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