तीन बरस पहले ट्रेन की चपेट में आने से मासूम दोनों हाथ गंवा बैठा। कई माह कोमा में रहने के बाद जो जिंदगी नसीब हुई, वह बस चल फिरने लायक थी। पापा ने सोचा स्कूल में पढ़ेगा तो क्या बस बोलने लगे, इसी तमन्ना के साथ स्कूल छोड़ दिया। टीचर ने जिद कर मासूम की जिंदगी बदल दी। अथक मेहनत का नतीजा यह निकला कि अब वही मासूम दूसरी कक्षा में पढ़ता है, अंग्रेजी व हिंदी तो फर्राटे के साथ लिखना व पढऩा, साथ में कंप्यूटर पर शानदार पेंटिंग भी बना देता है। यही नहीं खुद जूतों के जेस बांधता है और खुद ही टाई लगाता है। अपने सहपाठियों को भी वह नसीहत देना नहीं भूलता कि मेहनत करो, फल जरूर मिलेगा। बस उसकी तमन्ना यही है कि वह या तो इंजीनियर बने या फिर पेंटर बने।
हम बात कर रहे हैं करनाल के गांव साबली में रहने वाले सात वर्षीय कमलदीप पुत्र सुरेश कुमार की।तीन साल पहले मां की गोद से गिरकर वह ट्रेन की पटरी पर जा पड़ा और ट्रेन की चपेट में आने से उसके दोनों हाथ नहीं रहे। किसी तरह भगवान ने जिंदगी तो बख्श दी, लेकिन जिंदगी बोझ न बने, पापा ने कई स्कूलों में उसका दाखिला कराना चाहा, किसी ने हां नहीं की। आखिरकार महाराणा प्रताप स्कूल साबली में उसे पढऩे की इजाजत मिल गई। स्कूल डायरेक्टर एवं प्रिंसीपल पवन राणा ने न केवल उसे इजाजत दी, बल्कि निशुल्क पढ़ाने का निर्णय लिया। स्कूल टीचर आशा भूटानी ने जिद की कि वह बच्चे को न केवल पढऩा, बल्कि लिखना भी सिखाएंगी। अथक मेहनत एवं हौसला देते हुए टीचर ने उसे अंग्रेजी व हिंदी में दक्ष बना दिया। चंद दिनों बाद वह कंप्यूटर पर बैठने लगा और माउस भी मानो कमलदीप का गुलाम हो गया। क्या शानदार पेंटिंग और कंप्यूटर की नॉलेज उसे हुई, इससे स्कूल के बच्चे उसे ही लिटिल मास्टर कहने लगे हैं।
हम बात कर रहे हैं करनाल के गांव साबली में रहने वाले सात वर्षीय कमलदीप पुत्र सुरेश कुमार की।तीन साल पहले मां की गोद से गिरकर वह ट्रेन की पटरी पर जा पड़ा और ट्रेन की चपेट में आने से उसके दोनों हाथ नहीं रहे। किसी तरह भगवान ने जिंदगी तो बख्श दी, लेकिन जिंदगी बोझ न बने, पापा ने कई स्कूलों में उसका दाखिला कराना चाहा, किसी ने हां नहीं की। आखिरकार महाराणा प्रताप स्कूल साबली में उसे पढऩे की इजाजत मिल गई। स्कूल डायरेक्टर एवं प्रिंसीपल पवन राणा ने न केवल उसे इजाजत दी, बल्कि निशुल्क पढ़ाने का निर्णय लिया। स्कूल टीचर आशा भूटानी ने जिद की कि वह बच्चे को न केवल पढऩा, बल्कि लिखना भी सिखाएंगी। अथक मेहनत एवं हौसला देते हुए टीचर ने उसे अंग्रेजी व हिंदी में दक्ष बना दिया। चंद दिनों बाद वह कंप्यूटर पर बैठने लगा और माउस भी मानो कमलदीप का गुलाम हो गया। क्या शानदार पेंटिंग और कंप्यूटर की नॉलेज उसे हुई, इससे स्कूल के बच्चे उसे ही लिटिल मास्टर कहने लगे हैं।