एक ओर साक्षर भारत के सपने को साकार करने लिए एक तरफ सरकार अरबों रुपये खर्च कर रही है। वहीं शिक्षा के मंदिरों के पुजारी ही इस सपने को ध्वस्त करने में लगे हैं। हालत यह है कि गरीब पिता को अपनी बेटियों के स्कूल में दाखिले के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। हर बार नई तारीख तक मामला टाल टरका दिया जाता है। फतेहाबाद की हंस कालोनी निवासी भगवानदास राजकीय कन्या उच्च विद्यालय भोडियाखेड़ा में अपनी दो बेटियों के दाखिले के लिए लगभग एक माह से स्कूल के चक्कर लगा रहा है। आखिरकार हारकर भगवान दास ने जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में दस्तक दी लेकिन अभी भी उसकी बेटियों को दाखिला नहीं मिल पाया है। आठवीं कक्षा पास विद्यार्थी को नौवीं कक्षा में शिक्षा विभाग ने 10 मई तक की तारीख तय की थी। लेकिन भगवान दास की बेटियां रामभतेरी व पूजा शहर से बाहर होने के कारण निर्धारित समय अवधि के दौरान
दाखिला नहीं ले पाई। दाखिले की अंतिम तिथि निकलने के बाद वह स्कूल पहुंचीं, लेकिन उन्हें यह कहकर वापस भेज दिया कि दाखिले की तिथि जा चुकी है। उसने अधिकारियों से मिलना चाहा पर उसे सफलता नहीं मिल पाई। बाद में उन्हें समाचार पत्र के माध्यम से जानकारी मिली की निदेशालय ने दाखिले की तिथि 2 जून तक बढ़ा दी है तो वह फिर स्कूल पहुंचे लेकिन उन्हें फिर स्कूल से मायूसी ही हाथ लगी। उनका आरोप है कि स्कूल स्टाफ ने उसकी एक न सुनी और उन्हें दाखिले के लिए शपथपत्र लाने के लिए कहा। बार-बार स्कूल के चक्कर काटकर थकने के बाद जब वह एफिडेविट बनवाकर डीईओ कार्यालय पहुंचे तो उन्होंने भी यही आश्वासन देकर भेज दिया गया कि स्कूल जाइये दोनों बेटियों को दाखिला मिला जाएगा। उन्होंने कहा कि स्कूल द्वारा बरती जा रही लापरवाही के कारण ही उनकी बेटियां पढ़ने से वंचित रह रही है। भगवानदास का कहना है कि वह रेहड़ी चलाता है और बहुत गरीब है।
दाखिला नहीं ले पाई। दाखिले की अंतिम तिथि निकलने के बाद वह स्कूल पहुंचीं, लेकिन उन्हें यह कहकर वापस भेज दिया कि दाखिले की तिथि जा चुकी है। उसने अधिकारियों से मिलना चाहा पर उसे सफलता नहीं मिल पाई। बाद में उन्हें समाचार पत्र के माध्यम से जानकारी मिली की निदेशालय ने दाखिले की तिथि 2 जून तक बढ़ा दी है तो वह फिर स्कूल पहुंचे लेकिन उन्हें फिर स्कूल से मायूसी ही हाथ लगी। उनका आरोप है कि स्कूल स्टाफ ने उसकी एक न सुनी और उन्हें दाखिले के लिए शपथपत्र लाने के लिए कहा। बार-बार स्कूल के चक्कर काटकर थकने के बाद जब वह एफिडेविट बनवाकर डीईओ कार्यालय पहुंचे तो उन्होंने भी यही आश्वासन देकर भेज दिया गया कि स्कूल जाइये दोनों बेटियों को दाखिला मिला जाएगा। उन्होंने कहा कि स्कूल द्वारा बरती जा रही लापरवाही के कारण ही उनकी बेटियां पढ़ने से वंचित रह रही है। भगवानदास का कहना है कि वह रेहड़ी चलाता है और बहुत गरीब है।