Friday, April 27, 2012

नीतियों में नियोजन जरूरी (editorial)

 हरियाणा स्कूल शिक्षा बोर्ड की नीतियों की लचरता के कारण प्रश्नपत्रों के मूल्यांकन का काम बाधित हुआ और इसका असर दस जमा दो वार्षिक परीक्षा के परिणाम की घोषणा में विलंब के रूप में सामने आ सकता है। इसमें संदेह नहीं कि ऐन वक्त पर मूल्यांकन केंद्रों की वीडियोग्राफी के बोर्ड के आदेश से इस कार्य में लगे अध्यापकों के स्वाभिमान को ठेस लगी और स्वाभाविक प्रतिक्रिया के तौर पर उन्होंने मूल्यांकन कार्य का बहिष्कार कर दिया। संगठित विरोध के स्वर तेज होने पर शिक्षा बोर्ड को झुकना पड़ा और वीडियोग्राफी का आदेश वापस लेना पड़ा। इस प्रक्रिया में समय तो बर्बाद हुआ जिसका असर बोर्ड के आगामी कार्यक्रम के निर्धारण पर पड़ने जा रहा है।
हालांकि दसवीं के प्रश्नपत्रों का मूल्यांकन काफी हद तक पूरा हो गया है लेकिन दस जमा दो का अभी काम बाकी है। गंभीर बात यह भी है कि बारहवीं की मार्किंग दोबारा शुरू नहीं हो पाई। मूल्यांकन कार्य में लगे अध्यापकों की मांगें तो कई थीं लेकिन वीडियोग्राफी के फरमान ने उन्हें इस कदर आहत किया कि अन्य बातें गौण हो गई। फरमान वापस लिए जाने के बाद अब शिक्षा बोर्ड को अन्य मुद्दों पर अध्यापकों को विश्वास में लेकर स्थिति को सामान्य बनाने और नुकसान की भरपाई के लिए प्रयास करने चाहिए। वैसे अध्यापकों को भी अपने विरोध के स्थान, समय और तरीकों को तर्कसंगत और न्यायोचित बनाना चाहिए। अव्यावहारिक नीति बोर्ड की, त्वरित विरोध अध्यापकों का, इन दोनों पाटों के बीच विद्यार्थियों के हितों को क्यों कुचला जा रहा है? समय पर परीक्षा परिणाम घोषित न हुए तो उन छात्रों की क्या मन: स्थिति होगी जिन्हें दस जमा दो के बाद प्रतियोगी या व्यावसायिक परीक्षा में बैठना है। परिणाम घोषित नहीं हुए तो क्या उनकी भावी योजनाओं पर कुठाराघात नहीं होगा? क्या शिक्षा बोर्ड या अध्यापक संघ मिलकर भी उन्हें उन परीक्षाओं में विशेष मौका दिलवा सकते हैं? छात्रों व अभिभावकों की मानसिक पीड़ा की क्षतिपूर्ति कौन करेगा? इस बार चूंकि जमा दो के परिणाम देर से आने की आशंका के मद्देनजर हो सकता है कि मैट्रिक के रिजल्ट भी लेट हो जाएं। परिणाम एक निश्चित समयावधि में घोषित करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के परिप्रेक्ष्य में बोर्ड के शीर्ष अधिकारियों की पहली प्राथमिकता रिजल्ट समय पर घोषित करने की होनी चाहिए। इसके लिए तमाम व्यावहारिक एवं तार्किक वैकल्पिक उपाय तत्काल किए जाने चाहिए। नीतियों का नियोजन भी जरूरी है।