सेवा का शर्मनाक चेहरा रोहतक में अपना घर के नाम से चल रहे एनजीओ के अंदर की तस्वीर पूरे प्रदेश में चल रहे ऐसे सभी केंद्रों की गहन पड़ताल की मांग कर रही है। महिला, अनाथ बच्चों, विकलांगों, वृद्धों, बीमारों या सामाजिक सरोकारों के नाम पर एनजीओ चलाने वालों की संख्या कम नहीं बस कमी है तो इन पर निगरानी रखने वालों की। यह गंभीर जांच का विषय है कि रोहतक के एनजीओ में लाई गई अनाथ बच्चियों का यौन शोषण चल रहा था। क्या मोटी रकम लेकर उन्हें देह व्यापार में धकेला जा रहा था? केंद्र चलाने की अनुमति मिलने के बाद इस एनजीओ की कितनी बार केंद्र अथवा स्थानीय स्तर पर जांच हुई? केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय से उसे कितना धन हर साल मिल रहा था? केंद्र में अब तक कितनी अनाथ बच्चियों या निराश्रित महिलाओं कोआश्रय दिया गया? वे सब अब कहां हैं? रोहतक के केंद्र का एक चिंतनीय पहलू यह भी है कि जितने बच्चों के नाम रजिस्टर में दर्ज हैं उनमें से दर्जनों तो उपस्थित ही नहीं। आखिर वे कहां गए? क्या फर्जी संख्या दिखाकर अधिक चंदा वसूला जा रहा था? या फिर उन बच्चों को किसी
अन्य जगह अनैतिक कार्यो में धकेल दिया गया? केंद्र संचालिका की गिरफ्तारी से ही सब ठीक नहीं हो जाएगा बल्कि इस मकड़जाल की जड़ों पर प्रहार करना होगा। राज्य में चल रहे ऐसे तमाम एनजीओ तथा महिला एवं बाल कल्याण के नाम पर चल रहे सामाजिक संगठनों की भी बारीकी से जांच हो। प्रश्न आसपास रहने वाले लोगों की उदासीनता का भी है। किसी भी संदिग्ध या अवांछनीय गतिविधि की सूचना निकटवर्ती पुलिस स्टेशन को नहीं दी जाती। अप्रिय स्थिति के शिकार किसी व्यक्ति विशेष या इन केंद्रों में रहने वाले बच्चों, महिलाओं की शिकायत पर ही मामले का पर्दाफाश होता है। गुड़गांव जिले के एक एनजीओ में रहने वाली कई लड़कियों के यौन शोषण की पुष्टि हो चुकी है जो यह दर्शाने के लिए काफी है कि अन्य केंद्रों में भी निराश्रित महिलाएं या बच्चियां पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। एनजीओ को अनुमति के प्रावधान कड़े किए जाएं और उनके कामकाज पर निरंतर नजर रखी जानी चाहिए। एक आम धारणा बन चुकी है कि एनजीओ या तो मोटा धन डकारने वाले सफेद हाथी बन चुके हैं या फिर समाज सेवा का शौक पूरा करने वाले पिकनिक स्पॉट। सामाजिक शगल या स्टेटस सिंबल के लिए केंद्र चलाने वालों पर सरकार दोनों हाथों से धन लुटाना तत्काल बंद करे।
अन्य जगह अनैतिक कार्यो में धकेल दिया गया? केंद्र संचालिका की गिरफ्तारी से ही सब ठीक नहीं हो जाएगा बल्कि इस मकड़जाल की जड़ों पर प्रहार करना होगा। राज्य में चल रहे ऐसे तमाम एनजीओ तथा महिला एवं बाल कल्याण के नाम पर चल रहे सामाजिक संगठनों की भी बारीकी से जांच हो। प्रश्न आसपास रहने वाले लोगों की उदासीनता का भी है। किसी भी संदिग्ध या अवांछनीय गतिविधि की सूचना निकटवर्ती पुलिस स्टेशन को नहीं दी जाती। अप्रिय स्थिति के शिकार किसी व्यक्ति विशेष या इन केंद्रों में रहने वाले बच्चों, महिलाओं की शिकायत पर ही मामले का पर्दाफाश होता है। गुड़गांव जिले के एक एनजीओ में रहने वाली कई लड़कियों के यौन शोषण की पुष्टि हो चुकी है जो यह दर्शाने के लिए काफी है कि अन्य केंद्रों में भी निराश्रित महिलाएं या बच्चियां पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। एनजीओ को अनुमति के प्रावधान कड़े किए जाएं और उनके कामकाज पर निरंतर नजर रखी जानी चाहिए। एक आम धारणा बन चुकी है कि एनजीओ या तो मोटा धन डकारने वाले सफेद हाथी बन चुके हैं या फिर समाज सेवा का शौक पूरा करने वाले पिकनिक स्पॉट। सामाजिक शगल या स्टेटस सिंबल के लिए केंद्र चलाने वालों पर सरकार दोनों हाथों से धन लुटाना तत्काल बंद करे।