आइआइटी समेत दूसरे केंद्रीय इंजीनियरिंग संस्थानों में संयुक्त प्रवेश परीक्षा का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। आइआइटी कौंसिल के फैसले को लेकर सरकार के खिलाफ खुले मोर्चे के बीच खुद भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आइआइटी) के बीच टकराव भी सामने आने लगा है। आइआइटी खड़गपुर के निदेशक दामोदर आचार्य द्वारा एकल संयुक्त प्रवेश परीक्षा की पैरवी के बाद ऑल इंडिया आइआइटी फैकल्टी फेडरेशन और आइआइटी खड़गपुर की फैकल्टी उनके खिलाफ खड़ी हो गई है। आइआइटी खड़गपुर की फैकल्टी ने रविवार को कहा कि आइआइटी कौंसिल का फैसला विश्वासघात है। छात्रों का तनाव और बढ़ेगा। आइआइटी ने पांच दशकों में जो साख बनाई है, नया फैसला उसे पीछे ले जाएगा। ऐसे में 2014 के पहले ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया जाना चाहिए। ऑल इंडिया आइआइटी फैकल्टी फेडरेशन ने भी आइआइटी-खड़गपुर के निदेशक के बयान पर हैरानी जताते हुए कहा है कि आइआइटी खड़गपुर की सीनेट तो पहले ही प्रस्ताव पारित कर चुकी है कि वह प्रवेश परीक्षा में इंटर के अंकों को तवज्जो (वेटेज) के पक्ष में नहीं है। साथ ही उसे आइआइटी सिस्टम से अलग किसी तीसरे तंत्र से संचालित संयुक्त प्रवेश परीक्षा मंजूर नहीं है। ऐसे में निदेशक की तरफ से कॉमन प्रवेश परीक्षा व उसमें इंटरमीडिएट परीक्षा के अंकों को तवज्जो की बात गलत है। फैकल्टी फेडरेशन ने चेताया है कि आइआइटी-कानपुर की सीनेट के फैसले को दूसरी आइआइटी से अलग नहीं देखा जाना चाहिए। सूत्रों का कहना है कि इस पूरे मामले में सरकार (मानव संसाधन विकास मंत्रालय) कोई जल्दबाजी नहीं करेगी। कॉमन प्रवेश परीक्षा पर 2013 से अमल होना है। ऐसे में वह कानपुर समेत दूसरी आइआइटी की सीनेट के फैसलों के मिनट्स का इंतजार करेगी। सारी आइआइटी संसद के कानून से बनी हैं। लिहाजा, उनकी स्वायत्तता एवं आला दर्जे को बनाए रखते हुए जो भी जरूरी होगा, कानून के दायरे में किया जाएगा।
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