मेडिकल संस्थानों में होने वाले दाखिलों में धांधलेबाजी पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज न्यायपालिका और चिकित्सा संस्थानों व प्रशासन के लिए नये दिशा -निर्देश जारी करते हुए कहा कि दाखिलों में अनियमितता व घपलेबाजी में संलिप्त छात्रों को दाखिले से वंचित रह जाने वाले मेधावी अभ्यर्थियों को मुआवजा देना होगा।
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस स्वतंत्र कुमार और जस्टिस रंजन गोगोई की खंडपीठ ने कहा, ‘हम साफ करना चाहते हैं कि जो छात्र अथारिटी के साथ मिलकर अनुचित तरीकों से दाखिला पाते हैं और अगर उनके दाखिलों में किसी प्रकार की अनियमितता पायी जाती है अथवा कोर्ट द्वारा दाखिला प्रक्रिया को दोषपूर्ण करार दिया जाता है तो ऐसे छात्रों को दाखिले से वंचित रह जाने वाले अभ्यर्थियों को मुआवजा देना होगा।’ खंडपीठ ने यह व्यवस्था रोहतक के पंडित भगवद दयाल शर्मा यूनिवर्सिटी आफ हेल्थ साइंसिज में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिला न दिये जाने पर आशा नामक छात्रा द्वारा दायर की गयी याचिका के संदर्भ में दी। आशा को पिछले साल एमबीबीएस में यह बहाना मार कर दाखिला देने से इनकार कर दिया गया था कि वह कौंसलिंग के वक्त मौके पर मौजूद नहीं थी, हालांकि उसे पीडीएस कोर्स में दाखिले की पेशकश की गयी थी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि पसंद के कोर्स और कालेज में दाखिले के लिए मेरिट के नियम पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती। इस नियम का सभी को पालन करना होगा और वह भी बिना किसी हीला-हवाली किये। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दाखिला प्रक्रिया पूर्ण होने की डेडलाइन नि:संदेह 30 सितंबर थी जिस तक दाखिल होने वाले छात्रों को अपने कालेज में अवश्य ही रिपोर्ट करनी चाहिए थी। कोर्ट ने कहा कि आगे से सामान्यत: 15 सितंबर तक दूसरी कौंसलिंग कराकर दाखिले बंद कर देने होंगे। इसके बाद अपवाद के तौर पर किसी दुर्लभ मामले में कोर्ट की मार्फत किसी भेदभाव या मनमानी के शिकार मामलों पर ही विचार किया जाये। कोर्ट ने साथ ही कहा कि इन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जायेगी चाहे वे किसी भी पद पर हों। ऐसे छात्र जिनका मेडिसन में दाखिला गलत तरीकों से हुआ उन्हें डिग्री पूरी करने की इजाजत नहीं दी जायेगी बेशक उन्हें दाखिले में एक साल हो गया हो। कोर्ट ने कौंसलिंग कराने वाले अधिकारियों को विस्तृत रिकार्ड संजोये रखने के निर्देश भी दिये। खंडपीठ ने हाईकोर्टों से यह निवेदन भी किया कि मेडिसन दाखिलों संबंधी सभी मामलों का निपटारा जुलाई-अक्तूबर के बीच कर लें।
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस स्वतंत्र कुमार और जस्टिस रंजन गोगोई की खंडपीठ ने कहा, ‘हम साफ करना चाहते हैं कि जो छात्र अथारिटी के साथ मिलकर अनुचित तरीकों से दाखिला पाते हैं और अगर उनके दाखिलों में किसी प्रकार की अनियमितता पायी जाती है अथवा कोर्ट द्वारा दाखिला प्रक्रिया को दोषपूर्ण करार दिया जाता है तो ऐसे छात्रों को दाखिले से वंचित रह जाने वाले अभ्यर्थियों को मुआवजा देना होगा।’ खंडपीठ ने यह व्यवस्था रोहतक के पंडित भगवद दयाल शर्मा यूनिवर्सिटी आफ हेल्थ साइंसिज में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिला न दिये जाने पर आशा नामक छात्रा द्वारा दायर की गयी याचिका के संदर्भ में दी। आशा को पिछले साल एमबीबीएस में यह बहाना मार कर दाखिला देने से इनकार कर दिया गया था कि वह कौंसलिंग के वक्त मौके पर मौजूद नहीं थी, हालांकि उसे पीडीएस कोर्स में दाखिले की पेशकश की गयी थी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि पसंद के कोर्स और कालेज में दाखिले के लिए मेरिट के नियम पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती। इस नियम का सभी को पालन करना होगा और वह भी बिना किसी हीला-हवाली किये। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दाखिला प्रक्रिया पूर्ण होने की डेडलाइन नि:संदेह 30 सितंबर थी जिस तक दाखिल होने वाले छात्रों को अपने कालेज में अवश्य ही रिपोर्ट करनी चाहिए थी। कोर्ट ने कहा कि आगे से सामान्यत: 15 सितंबर तक दूसरी कौंसलिंग कराकर दाखिले बंद कर देने होंगे। इसके बाद अपवाद के तौर पर किसी दुर्लभ मामले में कोर्ट की मार्फत किसी भेदभाव या मनमानी के शिकार मामलों पर ही विचार किया जाये। कोर्ट ने साथ ही कहा कि इन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जायेगी चाहे वे किसी भी पद पर हों। ऐसे छात्र जिनका मेडिसन में दाखिला गलत तरीकों से हुआ उन्हें डिग्री पूरी करने की इजाजत नहीं दी जायेगी बेशक उन्हें दाखिले में एक साल हो गया हो। कोर्ट ने कौंसलिंग कराने वाले अधिकारियों को विस्तृत रिकार्ड संजोये रखने के निर्देश भी दिये। खंडपीठ ने हाईकोर्टों से यह निवेदन भी किया कि मेडिसन दाखिलों संबंधी सभी मामलों का निपटारा जुलाई-अक्तूबर के बीच कर लें।
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