हरियाणा के सरकारी व गैर सरकारी कॉलेजों में ग्रेजुएशन लेवल पर दाखिले और परीक्षा का पैटर्न बदलने की तैयारी चल रही है। आट्र्स व कॉमर्स स्ट्रीम में दाखिले के लिए विषय ग्रुप्स से ही चुनने होंगे। इससे शिक्षा विभाग के लिए कॉलेजों में गुणात्मक शिक्षा देना और विश्वविद्यालयों के लिए परीक्षाओं का संचालन करना आसान हो जाएगा। उम्मीद है कि नया पैटर्न इसी साल से लागू हो जाएगा।
अब तक कालेजों में दाखिले के समय स्टूडेंट्स को मनमर्जी के विषय चुनने की छूट है। गैर सरकारी कॉलेजों में तो बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर और फैकल्टीज के रहते संतोषजनक दाखिले हो जाते लेकिन सरकारी कॉलेजों में कई विषयों की मांग कम रहती है। इसी को ध्यान में रखकर राज्य की विश्वविद्यालयों ने बीते अरसे में शिक्षा विभाग को सुझाव दिया है कि दाखिले के मद्देनजर विषयों की ऑप्शन कम की जाए। इस पर विभाग सहमति है और विश्वविद्यालयों ने एक्सपट्र्स की कमेटी बनाकर विषयों के ग्रुप्स बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
उच्चतर शिक्षा महानिदेशक बलबीर सिंह मलिक के अनुसार अभी ग्रेजुएशन लेवल पर दाखिले के लिए आट्र्स स्ट्रीम में करीब दो दर्जन विषय हैं। ऐसे ही कॉमर्स में विषय चुनने की काफी छूट प्राप्त है। नतीजतन कई क्लासों में आठ से दस स्टूडेंट्स तक ही होते हैं। इन्हें बिठाने के लिए क्लासरूम तो चाहिए ही, उतनी फैकल्टी भी चाहिए। उसी तरह विश्वविद्यालयों को परीक्षा संचालन के लिए लंबी डेटशीट बनानी पड़ती और पेपर मार्किंग के लिए दिक्कतें उठानी पड़ती हैं। नतीजतन रिजल्ट देरी से घोषित होते हैं। साइंस में आप्शन मैथ और बायलॉजी में से एक विषय चुनने की ही रहती है।
अब तक कालेजों में दाखिले के समय स्टूडेंट्स को मनमर्जी के विषय चुनने की छूट है। गैर सरकारी कॉलेजों में तो बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर और फैकल्टीज के रहते संतोषजनक दाखिले हो जाते लेकिन सरकारी कॉलेजों में कई विषयों की मांग कम रहती है। इसी को ध्यान में रखकर राज्य की विश्वविद्यालयों ने बीते अरसे में शिक्षा विभाग को सुझाव दिया है कि दाखिले के मद्देनजर विषयों की ऑप्शन कम की जाए। इस पर विभाग सहमति है और विश्वविद्यालयों ने एक्सपट्र्स की कमेटी बनाकर विषयों के ग्रुप्स बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
उच्चतर शिक्षा महानिदेशक बलबीर सिंह मलिक के अनुसार अभी ग्रेजुएशन लेवल पर दाखिले के लिए आट्र्स स्ट्रीम में करीब दो दर्जन विषय हैं। ऐसे ही कॉमर्स में विषय चुनने की काफी छूट प्राप्त है। नतीजतन कई क्लासों में आठ से दस स्टूडेंट्स तक ही होते हैं। इन्हें बिठाने के लिए क्लासरूम तो चाहिए ही, उतनी फैकल्टी भी चाहिए। उसी तरह विश्वविद्यालयों को परीक्षा संचालन के लिए लंबी डेटशीट बनानी पड़ती और पेपर मार्किंग के लिए दिक्कतें उठानी पड़ती हैं। नतीजतन रिजल्ट देरी से घोषित होते हैं। साइंस में आप्शन मैथ और बायलॉजी में से एक विषय चुनने की ही रहती है।