योजना बाधित न हो हरियाणा में लिंग अनुपात के साथ कन्या शिक्षा की स्थिति भी बेहतर नहीं है। ड्रॉप आउट में अधिकतम संख्या कन्याओं की ही है। पांचवीं तक तो स्थिति कुछ संतोषजनक रहती है परंतु उसके बाद जैसे-जैसे कक्षा बढ़ती है, लड़कियों की संख्या घटती जाती है। हालांकि प्रदेश सरकार ने अनेक योजनाएं शुरू करके इस विसंगति एवं विडंबना को दूर करने की कोशिश की है
परंतु प्रयासों में निरंतरता न रहने और विभागीय समन्वय न होने के कारण या तो योजना बीच में ही बंद हो जाती है या उसका प्रभाव एवं प्रासंगिकता का लोप हो जाता है। हर कन्या को स्कूल तक पहुंचाने के लक्ष्य के लिए ही पहले छठी कक्षा की हर लड़की को मुफ्त साइकिल देने की योजना की घोषणा हुई जो कुछ अर्से बाद बंद कर दी गई। एक बार तो ऐसा भी हुआ कि साइकिल के लिए खर्च होने वाले धन को कंप्यूटर व अन्य कार्यो में व्यय करने की अधिसूचना जारी कर दी गई। अब नई पहल के तहत छठी से 12 वीं तक की हर छात्रा को मुफ्त साइकिल देने के साथ उच्च संस्थानों के लिए बस या ऑटो की सुविधा उपलब्ध करने पर गंभीर मंथन चल रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि योजना पर ईमानदारी और निरंतरता के साथ अमल हुआ तो स्त्री शिक्षा में हरियाणा लंबी छलांग लगा सकता है। सरकार के प्रयासों में गंभीरता लाने के लिए मंत्री से लेकर अधिकारी स्तर तक मजबूत समन्वय तंत्र विकसित किया जाना चाहिए। यह तंत्र सरकार व प्रशासन की जवाबदेही व शिक्षा क्षेत्र की तमाम योजनाओं की निरंतरता सुनिश्चित करे। योजनाओं की खामियों, अवरोधों और व्यवहारिकता के बारे में हर स्तर पर सरकार व संबंधित विभाग को आवश्यक सलाह के साथ हिदायत भी दे। सरकार की जवाबदेही सिर्फ योजना लागू करने तक ही सीमित नहीं, योजना का सफल क्रियान्वयन भी उसकी साख के साथ जुड़ा होता है। लिंग अनुपात में सुधार के लिए यद्यपि सरकार दीर्घकालिक योजनाओं को लागू कर चुकी है पर स्त्री शिक्षा को भी यदि इस सामाजिक विसंगति से निपटने के एक सशक्त हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाए तो परिणाम निश्चित तौर पर सकारात्मक एवं उत्साहजनक होंगे। सुशिक्षित समाज में ही विसंगतियों को न्यूनतम स्तर तक लाया जा सकता है। कन्या शिक्षा के लिए प्रदेश सरकार की नई पहल सराहनीय है पर यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कोई योजना लक्ष्य पूरा होने से पहले दम न तोड़े, न ही उसमें भटकाव दिखाई दे।
परंतु प्रयासों में निरंतरता न रहने और विभागीय समन्वय न होने के कारण या तो योजना बीच में ही बंद हो जाती है या उसका प्रभाव एवं प्रासंगिकता का लोप हो जाता है। हर कन्या को स्कूल तक पहुंचाने के लक्ष्य के लिए ही पहले छठी कक्षा की हर लड़की को मुफ्त साइकिल देने की योजना की घोषणा हुई जो कुछ अर्से बाद बंद कर दी गई। एक बार तो ऐसा भी हुआ कि साइकिल के लिए खर्च होने वाले धन को कंप्यूटर व अन्य कार्यो में व्यय करने की अधिसूचना जारी कर दी गई। अब नई पहल के तहत छठी से 12 वीं तक की हर छात्रा को मुफ्त साइकिल देने के साथ उच्च संस्थानों के लिए बस या ऑटो की सुविधा उपलब्ध करने पर गंभीर मंथन चल रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि योजना पर ईमानदारी और निरंतरता के साथ अमल हुआ तो स्त्री शिक्षा में हरियाणा लंबी छलांग लगा सकता है। सरकार के प्रयासों में गंभीरता लाने के लिए मंत्री से लेकर अधिकारी स्तर तक मजबूत समन्वय तंत्र विकसित किया जाना चाहिए। यह तंत्र सरकार व प्रशासन की जवाबदेही व शिक्षा क्षेत्र की तमाम योजनाओं की निरंतरता सुनिश्चित करे। योजनाओं की खामियों, अवरोधों और व्यवहारिकता के बारे में हर स्तर पर सरकार व संबंधित विभाग को आवश्यक सलाह के साथ हिदायत भी दे। सरकार की जवाबदेही सिर्फ योजना लागू करने तक ही सीमित नहीं, योजना का सफल क्रियान्वयन भी उसकी साख के साथ जुड़ा होता है। लिंग अनुपात में सुधार के लिए यद्यपि सरकार दीर्घकालिक योजनाओं को लागू कर चुकी है पर स्त्री शिक्षा को भी यदि इस सामाजिक विसंगति से निपटने के एक सशक्त हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाए तो परिणाम निश्चित तौर पर सकारात्मक एवं उत्साहजनक होंगे। सुशिक्षित समाज में ही विसंगतियों को न्यूनतम स्तर तक लाया जा सकता है। कन्या शिक्षा के लिए प्रदेश सरकार की नई पहल सराहनीय है पर यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कोई योजना लक्ष्य पूरा होने से पहले दम न तोड़े, न ही उसमें भटकाव दिखाई दे।
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