Wednesday, July 11, 2012

EDITORIAL सरकारी स्कूलों में बदलाव की बयार

एक समय था जब छोटे-बड़े सभी गांवों, कस्बों, नगरों तथा महानगरों के विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने हेतु केवल सरकारी स्कूलों में ही जाया करते थे। अच्छी गुणवत्ता के कारण ही इन सरकारी स्कूलों से कुशल प्रशासनिक अधिकारी, अनुभवी चिकित्सक, सफल वकील, जुझारू इंजीनियर तथा बुद्धिमान उद्योगपति निकले। शनै: शनै: प्राइवेट स्कूलों ने अपना आधिपत्य जमाया और सरकारी स्कूलों की दशा दीन-हीन होती चली गयी। वर्तमान युग में एक बार फिर सरकार का ध्यान सरकारी स्कूलों की ओर गया है और सरकार इन स्कूलों में बेहतर सुविधाओं के साथ-साथ रोजगारपरक शिक्षा मुहैया करवाने को कटिबद्ध जान पड़ती है। सरकार ने आमूलचूल परिवर्तनों की दुन्दभी बजा दी है जिससे विद्यार्थियों के अतिरिक्त उनके अभिभावकों में भी जागृति की नई लहर-सी अंगड़ाई ले उठी है।
सरकारी तौर पर निम्न परिवर्तन स्कूलों में लागू करके एक अनूठी पहल हुई है:-
० मिड डे मील योजना, जिसके अंतर्गत पहली क
क्षा से आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को थालियों में दोपहर का भोजन उपलब्ध करवाया जाता है।
० आठवीं तक के सभी वर्गों के विद्यार्थियों को मुफ्त वर्दी, स्टेशनरी एवं पुस्तकें प्रदान की जाने लगी हैं।
० विद्यार्थियों से फीस नहीं ली जाती है।
० विद्यार्थियों को भयमुक्त अध्ययन हेतु उनके शारीरिक दंड पर पूर्णरूपेण रोक लगा दी गयी है।
० विद्यार्थियों में अध्ययन को रुचिकर एवं सरल बनाने के उद्देश्य से आठवीं तक उन्हें अनुत्तीर्ण करने पर पाबंदी लगा दी गयी है तथा आठवीं (मिडल) की बोर्ड परीक्षा भी हटा दी गयी है।
० नौवीं कक्षा से बारहवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को अनिवार्य रूप से पहचान-पत्र लागू किए गए हैं जो कई अर्थों में लाभकारी हैं।
० अध्यापक-अभिवावक मीटिंग (पी.टी.एम.) का प्रावधान किया गया है जो अध्यापक एवं विद्यार्थी के मध्य एक सशक्त सेतु है।
० विद्यालय प्रबंधन समितियों का गठन  कर विद्यालयों  के चहुंमुखी विकास व सुधार हेतु अच्छा कदम उठाया गया है।
० अनुपस्थिति की दशा में जुर्माना न लगाने पर बल दिया गया है ताकि अभिभावकों पर आर्थिक बोझ न पड़े।
० लगातार गैरहाजिर  रहने पर भी विद्यार्थियों का नाम नहीं काटा जाता है।
० सतत् व्यापक मूल्यांकन (सी.सी.ई.) लागू होने से शिक्षा की गुणवत्ता में निखार आया है।
० सेमेस्टर प्रणाली से वर्ष में दो बार परीक्षाएं आयोजित होने से पढ़ाई में कमजोर विद्यार्थी भी आगे बढ़ रहे हैं तथा अच्छे विद्यार्थी और ज्यादा अच्छे अंक लाने में आगे आए हैं।
० सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए) एवं राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) के माध्यम से स्कूलों के भवनों की हालत सुधरी है तथा उनमें मूलभूत सुविधाएं प्रदान की गयी हैं।
० डी.टी.एच. के माध्यम से पाठ योजनाएं लागू की जा रही हैं।
० कम्प्यूटर-लैब का निर्माण करके विद्यार्थियों को कम्प्यूटर की शिक्षा दी जा रही है।
इतना सब कुछ होते हुए भी शायद सरकार उस लक्ष्य को अर्जित नहीं कर पा रही है जिसे प्राइवेट स्कूल सीमित संसाधनों में ही छू लेते हैं। आखिर क्यों? यदि इस तथ्य की गहराई में जाएं तो कुछ कारण मिलेंगे जो विकास में बाधक बने हुए हैं। वे हैं:-
० समय-समय पर अध्यापकों की ड्यूटी जनगणना-कार्य में लगा देना।
० बीएलओ के तौर पर महीनों तक नये वोट बनवाने हेतु अध्यापकों की जबर्दस्ती ड्यूटी लगाना। शिक्षा अधिकारी उदासीन रहते हैं।
० चुनाव कार्यों में अध्यापकों को संलिप्त करना।
० बीपीएल सर्वे में अध्यापकों से काम लेना।
० बाढ़ एवं अन्य आपदा कार्यों में अध्यापकों की सेवाएं लेना।
० समय-समय पर डोर टू डोर सर्वे हेतु अध्यापकों को ही लगाना।
० डाक के काम का बोझ डालना।
० विद्यालयों में रिक्तियों को समय पर पूरी न करना।
० सरकार की ढुलमुल नीतियां तथा योजनाएं समय पर लागू न करना।
यदि उक्त विसंगतियों को दूर करके अध्यापकों को पूरे मनोवेग से शिक्षण-कार्य में लगे रहने दिया जाए तो सरकारी स्कूलों के कमजोर विद्यार्थियों का परिणाम भी प्राइवेट स्कूलों के अच्छे विद्यार्थियों से बेहतर आ सकता है। इसके अतिरिक्त विद्यालयों में  नियमित रूप से निरीक्षण भी हों जो जिला शिक्षा अधिकारी की देखरेख में हों। फिर वह दिन दूर नहीं जब सरकार अपने प्रयासों का सुखद परिणाम पाए!

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