आप खुद को तभी बदल सकते हैं जब आप अपने दिमाग में चल रहे विचारों को बदल सकें। आप जैसा सोचते हैं वैसे बन जाते हैं। अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए आपको अपने विचारों की गुणवत्ता सुधारनी होगी। विचार प्रक्रिया को प्रभावित करने वाली एक बात जिंदगी को हमेशा के लिए बदल सकती है। सोचने की दिशा में एक अहसास, एक आइडिया, एक बदलाव, अंतर्दृष्टि व जागरुकता की जरूरत होती है और आपकी जिंदगी पहले जैसे नहीं रहेगी। अच्छी किताबों को पढऩे से ऐसा हो सकता है।
किताबें महान लोगों के विचारों का भंडार हैं। किताबों को पढऩे के दौरान वास्तव में हम उस महान आत्मा के विचारों का अनुभव करते हैं। हमें गांधी जी का प्रत्यक्ष अनुभव भले ही न हुआ हो लेकिन उनकी आत्मकथा पढ़कर हम उनके विचारों का अनुभव तो कर ही सकते हैं। हम कबीर के दोहों को पढ़कर उनके विचारों को जान सकते हैं। इसलिए जब आप अच्छी किताबें पढ़ते हैं, तो यह उन महान आत्माओं के साथ पर्सनल मीटिंग करने जैसा होता है। शिष्य ने पूछा मैंने कई बार भागवत गीता पढ़ी है, लेकिन मुझे खुद में कोई बदलाव नहीं दिखता है। गुरु ने जवाब दिया कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आपने गीता कितने बार पढ़ी है। जरूरी यह है कि कम से कम एक बार आप उसे आत्मसात करें।
कैजुअल और परपजफुल रीडिंग की दुनिया अलग है। मनोरंजन से जुड़ी पठनीय चीजें टाइम पास से अधिक कुछ नहीं है। इनको सरसरी नजर से पढऩा काफी है। मगर, ज्ञान देने वाली किताबें पढऩे के लिए आपके पास उपयुक्त जगह व पर्याप्त समय होना चाहिए। जिन चीजों ने आपको प्रभावित किया उन्हें पेन से मार्क करें। एक बार पढऩे के बाद फिर से उन पन्नों को पलटिए। मार्क किए गए वाक्यों पर दोबारा ध्यान दीजिए। किसी भी अच्छी किताब को दूसरी बार पढऩे के बाद आपको लगेगा कि पहली बार पढऩे में कितनी अच्छी चीजें छूट गईं थीं। सही किताबों को पढऩा अपनी जिंदगी में अच्छे दोस्त को पाने जैसा है।
किताबें महान लोगों के विचारों का भंडार हैं। किताबों को पढऩे के दौरान वास्तव में हम उस महान आत्मा के विचारों का अनुभव करते हैं। हमें गांधी जी का प्रत्यक्ष अनुभव भले ही न हुआ हो लेकिन उनकी आत्मकथा पढ़कर हम उनके विचारों का अनुभव तो कर ही सकते हैं। हम कबीर के दोहों को पढ़कर उनके विचारों को जान सकते हैं। इसलिए जब आप अच्छी किताबें पढ़ते हैं, तो यह उन महान आत्माओं के साथ पर्सनल मीटिंग करने जैसा होता है। शिष्य ने पूछा मैंने कई बार भागवत गीता पढ़ी है, लेकिन मुझे खुद में कोई बदलाव नहीं दिखता है। गुरु ने जवाब दिया कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आपने गीता कितने बार पढ़ी है। जरूरी यह है कि कम से कम एक बार आप उसे आत्मसात करें।
कैजुअल और परपजफुल रीडिंग की दुनिया अलग है। मनोरंजन से जुड़ी पठनीय चीजें टाइम पास से अधिक कुछ नहीं है। इनको सरसरी नजर से पढऩा काफी है। मगर, ज्ञान देने वाली किताबें पढऩे के लिए आपके पास उपयुक्त जगह व पर्याप्त समय होना चाहिए। जिन चीजों ने आपको प्रभावित किया उन्हें पेन से मार्क करें। एक बार पढऩे के बाद फिर से उन पन्नों को पलटिए। मार्क किए गए वाक्यों पर दोबारा ध्यान दीजिए। किसी भी अच्छी किताब को दूसरी बार पढऩे के बाद आपको लगेगा कि पहली बार पढऩे में कितनी अच्छी चीजें छूट गईं थीं। सही किताबों को पढऩा अपनी जिंदगी में अच्छे दोस्त को पाने जैसा है।
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